रब की बनाई कुदरत सी लगती है,
मेरी बेटी, सुबह की पहली किरण सी लगती है।
चिड़ियों की मधुर आवाज़ में बसी है वो,
कोयल की मीठी बोली से सजी है वो,
मानों, जैसे उनका स्वर सी लगती है,
मेरी बेटी, सुबह की पहली किरण सी लगती है।
वो जागती है तो घर में उजाला हो जाता है,
उसकी मुस्कान से दिन सुहाना हो जाता है,
सच कहूं, मुझे वो सुहाने मौसम सी लगती है,
मेरी बेटी, सुबह की पहली किरण सी लगती है।
आसमाँ में जब जब काले बादल आते है,
तन और मन दोनों को भिगो जाते है,
मुझे वो बारिश की बूंदों सी लगती है,
मेरी बेटी, सुबह की पहली किरण सी लगती है।
बागों बहारों में जिनकी खूब चलती है
जिनकी महक हवाओं में हरदम रहती है,
बेटी, गुलाबों का वही गुलशन सी लगती है,
मेरी बेटी, सुबह की पहली किरण सी लगती है।
अमावस्या की रात जो रोशनी कर जाता है,
टिमटिमाते जुगनू सा हर कहीं बिखर जाता है,
चन्द्रमा के उसी प्रकाश सी लगती है,
मेरी बेटी, सुबह की पहली किरण सी लगती है।
रब की बनाई कुदरत सी लगती है,
मेरी बेटी, सुबह की पहली किरण सी लगती है।
मेरी बेटी, सुबह की पहली किरण सी लगती है।
Love you alway my life ummmmaa.
Written by D.Kumar
Written by D.Kumar
2 टिप्पणियाँ
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंधन्यवाद जी,
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