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क्यों अपना सुख और चैन लुटाऊं मैं




















क्यों अपना सुख और चैन लुटाऊं मैं
कल की चिंता में अपना आज क्यों गवाऊं मैं

अगर किस्मत का लिखा ही होना है
तो फिर
अब तू ही बता ए दोस्त मेरे
अपनी किस्मत से कैसे लड़ जाऊं मैं
कल की चिंता में अपना आज क्यों गवाऊं मैं।

ना ही कल में ना ही आज में जीता हूं
कल की फिक्र छोड़ मैं हर पल में जीता हूं
क्यों सोचू इस पल यहां
तो अगले पल कहां जाऊं मैं
कल की चिंता में अपना आज क्यों गवाऊं मैं

जीवन में कैसे और क्या करना है
अपनी मंज़िल की ओर मुझे धीरे धीरे बढ़ना है
मैं अभी जिंदा हूं
कल की चिंता में अपना आज क्यों गवाऊं मैं

सुनहरे भविष्य के लिए माना बचत जरुरी है
पर पेट काटकर जीना पड़े
आने वाले कल के लिए
क्यों आज भिखारी बन जाऊं मैं
कल की चिंता में अपना आज क्यों गवाऊं मैं

गर अपनी बात करु तो किसी के लिए दिल में धोखा नहीं
वो चार लोग क्या कहेंगे मैंने आज तक सोचा नहीं
उन चार लोगो की सोचूं गर
तो कुछ भी न कर पाऊं मैं
कल की चिंता में अपना आज क्यां गवाऊं मैं

तमाम उम्र की बचत उसने तब माया का भण्डार लगा
कई वर्षों बाद उसे सुंदर सुखद संसार लगा
अब वक्त आया उसमें खोने का
पर ये क्या
भटकता हुआ वो यही सोचे
कल की चिंता में अपना आज क्यों गवाऊं मैं।

क्यों अपना सुख और चैन लुटाऊं मैं
कल की चिंता में अपना आज क्यों गवाऊं मैं
Written By D.Kumar


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