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ये गज़ल कैसी होती है

कभी मिट्टी के घर, तो कभी महल जैसी होती है,
आज मैंने जाना यारों कि ये गज़ल कैसी होती है।

बड़े बड़े कवियों और शायरों ने है पाला इसे,
दिल जिसका भी टूटा उसी ने है लिख डाला इसे,
कभी खुशी ये दिल की, तो कभी गम जैसी होती है,
आज मैंने जाना यारों की ये गज़ल कैसी होती है।

बयां करती है दर्द किसी का, तो किसी पर प्यार लुटाती है,
जो भी आया पसंद इसको, उसके साथ ये चलती जाती है,
कभी सुहाने मौसम की तरह, तो कभी लॉन्ग ड्राईव जैसी होती है
आज मैंने जाना यारों कि ये गज़ल कैसी होती है।

गर लिखी हो ये शराब पर तो हर शराबी झूमने लगता है,
कभी-कभी मदहोशी में, अपने दोस्त को चूमने लगता है,
कभी होश तो कभी ये बेहोशी जैसी होती है,
आज मैंने जाना यारों कि ये गज़ल कैसी होती है।

इंसान गर हो कमज़ोर तो उसे ये मजबूत कर देती है,
तोड़ देती है किसी को अंदर तक तो किसी में जोश भर देती है,
कभी किसी के हौसले सी तो कभी डर जैसी होती है,
आज मैंने जाना यारों कि ये गज़ल कैसी होती है।

सुबह सुबह जो आँख खुली चेहरा उसका सामने आया,
शाम लगा जब पीने यारों, चेहरा उसका जाम में आया,
ये कभी उतरती तो कभी चढ़ती जैसी होती है,
आज मैंने जाना यारों कि ये गज़ल कैसी होती है।

जिस पर भी चढ़ जाए रंग इसका फिर वो जल्दी उतरता नहीं है
बिगड़ता ही चला जाता है वो, फिर वो जल्दी सुधरता नहीं है,
कभी ये रंग जीवन का तो कभी बे-रंग जैसी होती है,
आज मैंने जाना यारों कि ये गज़ल कैसी होती है।

ये किसी की झोपड़ी तो किसी की कोठी बनती है,
गरीब के घर की ये कभी रोज़ी रोटी बनती है,
कभी थाली में खाना भरपूर तो कभी भूख जैसी होती है,
आज मैंने जाना यारों कि ये गज़ल कैसी होती है।
  

कभी देती है खुशी भरपूर तो कभी आँसू देती है,
कर देती है दूर किसी से तो किसी को पलकों में भर लेती है,
कभी ये इनकार तो कभी इकरार जैसी होती है
आज मैंने ये जाना यारों कि ये गज़ल कैसी होती है।

कभी मिट्टी के घर, तो कभी महल जैसी होती है,
आज मैंने जाना यारों कि ये गज़ल कैसी होती है।
Written by D_Kumar















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